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Thursday 29 March 2018

For Hindi lovers ,

Why is a mirror so important for us? Maybe because of its ability to show the truth. In the same manner, for society "Literary work" serves as a mirror. But this aspect of literary work is getting diminished day by day. The majority of work is now being focused on "fiction", and in this race of false praise, most of us have forgotten the X-Factor of literary work. This is the sole reason behind the creation of Megha. Megha isn't just a book but it's a collection of little experiences, beliefs, hopes and observations. Since the very first poem of Megha is "Indradhanush”, you will surely have a walk through the garden full of flowers of all 7 colors in the whole book. It has romance, patriotism, social awareness, motherhood, childhood and many other colors. Now talking about the best part of the book, all of them are woven with beads of precious elements of literature like personification, metaphors and other figures of speech in a thread of our mother tongue Hindi. There are a total of 25 such poems starting from "Indradhanush" and ending at "Bebas". All of them are written for a purpose and has a story behind them. It’s a memorable collection of my writings of last 10+ years. And since it’s my first book, the subtitle goes like “Poem of an amateur” and thus your suggestions and valuable feedback will surely serve as building blocks for my future projects.


Link for the Book is 
given below:-

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Tuesday 28 June 2016

वो लड़की


वो लड़की



हम अक्सर उस मोड़ पे ,रूकते हैं;
और उस खिड़की को,तकते हैं;
जहाँ वर्षों पहले वो लड़की;
बालों को सुखाया करती थी;


जब कदम चुमते हैं,उस पथ को;
जो जाता था उसके घर को;
सिहरन दिल में उठती ऐसी;
मानो छुआ हो,ज्यों बिजली को;
आगे चल कर हम,रूकते हैं,
और उस मंदिर को , तकते हैं,
जहाँ वर्षों पहले वो लड़की,
भोले की पूजा करती थी;


मंदिर के आगे है,वो बगीचा;
ध्यान सदा जिसने है खींचा;
फूल फलों से भरा पड़ा है;
और उसका झूला है नीचा;
अंदर जा कर ,हम रूकते हैं;
और उस झूले को ,तकते हैं;
जहाँ वर्षों पहले ,वो लड़की;
मस्ती में, झूला करती थी;


अब बस उसका,घर आया है;
आज जिसे ,खंडहर पाया है;
कभी चहकता था, जो दिनभर;
आज वहाँ, सूना साया है;
घर के बाहर ,हम रूकते हैं;
और उस छज्जे , को तकते हैं;
जहाँ वर्षों पहले ,वो लड़की;
नज़रों को , चुराया करती थी;

Sunday 7 June 2015





शायरी

 

"वो बुर्क़ा भी हो गया  काला , ज़माने की नज़रें ले ले कर;

शायद ख़ुदा भी फ़क़ीर हो गया,तुझे ऐसा हुस्न दे दे कर;

गिला ये नहीं हमें, कि हम अधूरे हैं;

अरे ! हम तो थक गए हैं; वफ़ादारी का इंम्तेहाँ दे दे कर;"

 

 

"उनकी अदाएं भी क़ातिलाना है, और जुल्फें भी

पहली बिजलियाँ गिराती है , तो दूसरी बरसात लाती है;"

 

 

"उनकी दस्तक़ का इंतेज़ार हम करते रहे,

वो आएंगे , ये सोच दरवाज़े  दीदार हम करते रहे;

पर शायद भूल गए थे हम , कि वो तो बेवफ़ा हैं;

और हम उनका ऐतबार करते रहे;"

 

 

"कोई मशग़ूल खुद में इस क़दर हुआ है ;

कि वो अपना भी गैर सा हुआ है;

ना इल्म है उसे , और ना ही ख़बर है ;

कि उसकी याद में ये गैर, ज़िंदा रहकर भी मुर्दे सा हुआ  है;"

 

 

 

"ख्वाईश नहीं कि जंहा को अपना बनाऊं;

ख्वाईश नहीं कि सबके दिल-ओ-दिमाग  पर छा जाऊं;

ख्वाईश नहीं कि शान-ओ-शौहरत पाऊं;

बस आरज़ू तो ज़रा सी है कि ,

आदम की औलाद हुँ , खुद को आदमी साबित कर जाऊं;"


Friday 29 May 2015

Wo shaam Suhaani

"वो शाम सुहानी , मस्तानी ; जब दिल ने करी थी मनमानी ;
 Lonliness को दूर किया तब, friendship हमने कर डाली;

वो थोड़ी सी शरमाई थी, ना जाने क्यों घबराई थी;
काली-काली जुल्फ़ें उसकी, मानो बदरा घिर आई थी;
गूंगे-बहरे सा होकर मैं,बस उसको ही था देख रहा;
बिन हाथ लगाए whisky को,कैसी मदहोशी छायी थी;

क्या मुखड़ा था उस गोरी का,सरल-सलोनी छोरी का;
क्या मधुर बोल उसके निकले, ज्यों गीत सुना हो लोरी का;
अब शाम हो गयी हमें है चलना,सखी चलो जल्दी है चलना;
यों कहने लगी वो हड़बड़ में, ज्यों काम किया हो चोरी का;

Sense मुझे जल्दी से आया , पानी आँखों पे छिड़काया ;
अरे! तू कह दे , जो कहना है; दिल ने मेरे मुझे समझाया;
हिम्मत करले ,आगे बढ़ जा; आज मिला है मौका चल जा;
फिर  ना मिलेगा मौका ऐसा,आज अगर जो कह ना पाया;

हाथ हिलाकर उससे पूछा -"ज़रा सा सुनिए -क्या Time हुआ है?"
पीछे मुड़कर बोली madame -"घड़ी हाथ में और Time पूछा है;
होश में है या पिया हुआ है?"
तुम जैसों की ज़ात पता है,खोटी नीयत सब दीखता है;
जहाँ भी देखी Single लड़की , यूँ  friendly होने लगते कि
"किसी ने तुम्हे invite किया है ?"

shocked हो गया बिल्कुल मैं तो,बड़ी ही violent निकली ये तो;
हिम्मत करके उससे बोला , बाबा वाले ज्ञान को ढोला;
सही कहा है तुमने बिल्कुल,हम जैसों का राज़ है खोला;

Frankly saying तुम अच्छी हो,मुझे लगा था तुम catchy हो;

Single  मैं भी,तुम भी Single , इसीलिए "Shall we mingle ?"
मुझे नहीं experience कोई,school time से रहा हुँ single ;

तुम चाहो तो थप्पड़ जड़ दो,मुझ पर कई आरोप भी मढ़ दो;
पर जो सच है मैंने सुनाया, अब चाहो तो हामी भर दो;

नहीं ज़रूरी कि मैं तुमको,हर हफ़्ते Movie ले जाऊं;
नयी Bike में तुम्हे बिठाकर , Long -Drive  पर मैं ले जाऊं;
पर ये वादा है मेरा सुन लो, आँख में ना लाऊंगा आंसू;
जो कोई Tension  तेरी होगी, सबसे पहले मैं सुलझाऊँ;

इतना कह कर turn हुआ मैं,चलने को return हुआ मैं;

अभी चला था थोड़ी दूर , कि वो बोली "Shall we meet ?";
समय मुझे दो थोड़ा सा तुम, after that I'll  greet ;

तब तक Will you do a Favor , बदल गए थे उसके तेवर;
क्या मुझको तुम drop कर दोगे , can  we friend for forever ?;

यही कहानी,बड़ी सुहानी;जिस पर based है मेरी जवानी;

"वो शाम सुहानी , मस्तानी ; जब दिल ने करी थी मनमानी ;
 Lonliness को दूर किया तब, friendship हमने कर डाली;


  

Sunday 1 February 2015





कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था; 
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था; 

जब जन्मे तब एक साथ थे, खेले तब भी एक साथ थे; 
खेत हमारे आस-पास थे, नदी और नाले साथ-साथ थे; 
गन्ने तेरे गुड़ मेरा था, सरसों तेरी साग मेरा था; 
चरती तेरी गायें जिसमें, हरा-भरा वो खेत मेरा था; 
तेरी होली रंग मेरा था, ईद मेरी और संग तेरा था; 
मन मुरीद जिससे हो जाए, आव-भगत का ढंग तेरा था; 
कपड़े मैंने तेरे पहने, खाना तूने मेरा खाया; 
भिन्न पंथ के होने पर भी, खुदा ने हमको ख़ूब मिलाया; 
पर पता किसे था दिन ऐसा भी, वो हमको दिखलायेगा; 
सदा चहकता पिंड मेरा ये, लाशों से पिट जाएगा; 
छोटी-छोटी गलियों में तब, लहू-सरिता का अविरल संचार हुआ था; 
कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था; 
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था; 

हाथ अगर थे, सर गायब था; 
कहीं बदन से, पैर गायब था; 
तिरछी नज़रें, जँहा से आती; 
नुक्कड़ वाला, घर गायब था; 
खेत तो थे, पर फसलें जल गयी; 
घर की नाली नदियां बन गयी; 
बड़-बड़ करती, 'बूढ़ी काकी'; 
घर की एक, दीवार पे टंग गयी; 
सुबह-शाम हर दरवाज़े से, केवल क्रंदन-गान हुआ  था; 
कंट-जड़ित माला से, जब श्रृंगार हुआ था; 
एक बहुभाषीय देश में, भीषण नरसंघार हुआ था; '

Saturday 20 December 2014

"हे वीर ! उठा शमशीर ! बदल तक़दीर !
आज फिर मौका आया है ;
हर क्षण पीड़ा को झेल रही भारत माँ ने ,
आज फिर तुझे बुलाया है;


हे लाल ! बुरा है हाल ,
मेरा अब तू ही सहारा है ;
इन रिपुओं  पर कर वार ,उठा तलवार !
मेरा अब तू ही सहारा है ;
हर संध्या भयभीत करे है ,और क्रंदन संगीत करे है ;
पता नहीं कब कौन चला दे,सीमा पर तलवार ;
अब और नहीं बलकार ,तुझे तेरी माँ ने बुलाया है ;
आज फिर मौका आया है;
हे वीर! उठा शमशीर ! बदल तक़दीर !


तेरा बचपन , मेरा जीवन ;
मेरा जीवन ,हाथ में तेरे ;
इसे बचाना कर्म है तेरा ;
खड़े है रिपुदल ,जिसको घेरे ;
लहू-सरिता  जब  बहती है ,आहत  मुझको कर देती है ;
लहू बहा हो चाहे जिसका ,होता छलनी मेरा सीना ;
वो भी मेरा तू भी मेरा ,तू सपूत और वो कपूत है ;
पर मैं ठहरी अबला माता ;जिसका मुश्किल हुआ है जीना ;
मेरा अंश ही ना जाने कब ,मुझ पर कर दे वार ;
अब तू ही उसे ललकार ,तुझे तेरी माँ ने बुलाया है;
आज फिर मौका आया है;


"हे वीर ! उठा शमशीर ! बदल तक़दीर !
आज फिर मौका आया है ;
हर क्षण पीड़ा को झेल रही भारत माँ ने ,
आज फिर तुझे बुलाया है;"